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हिन्दुस्तानी कहावत कोश

एस.डब्ल्यू.फैलन

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :373
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7197
आईएसबीएन :9788123746852

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हिन्दुस्तानी कहावत कोश

Hindustani Kahawat Kosh - A Hindi Book - by S. W. Fallon

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

अंग्रेज़ की नौकरी और बंदर नचाना बराबर है
वह एक बहुत मुश्किल काम है।
(बंदर एक बड़ा चंचल और चिड़चिड़े स्वभाव का जानवर होता है। ज़रा भी नाराज़ हो जाए तो या तो अपना खेल दिखाना बंद कर देगा, या मदारी को नोंच-खसोट लेगा। इसलिए कहावत का भाव यह है कि अंग्रेज़ की नौकरी में बहुत सावधान रहने की ज़रूरत पड़ती है। ज़रा चूके कि गए !)
अंग्रेज़ भी अक्ल के पुतले हैं
बड़े गुणी हैं।
अक्ल का पुतला–एक मुहा., बुद्धिमान।
अंग्रेज़ी राज, तन को कपड़ा न पेट को नाज
टैक्सों के बोझ से पीड़ित जनता को अच्छी तरह खाना-कपड़ा नहीं मिलता था।
अंग्रेज़ों ने चरसा भर ज़मीन से सारा हिन्दुस्तान अपना कर लिया
अर्थात वे पक्के व्यवसायी और कूटनीतिज्ञ हैं।
चरसा, (चरस) भूमि नापने का एक परिमाण जो 2100 हाथ का होता है।
अंडा सिखावै बच्चे को कि चीं-चीं मत कर
छोटे मुंह बड़ी बात।
अंडुवा बैल, जी का जवाल, (ग्रा.)
स्वतंत्र और उच्छृंखल व्यक्ति के लिए क.।
अंडुवा=बिना बधियाया हुआ बैल। सांड।
अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई
परिश्रम कोई करे, और कोई लाभ उठाए।
अंडे सेना=पक्षियों का अपने अंडों पर गर्मी पहुँचाने के लिए बैठना।
अंतड़ियां कुल्हू अल्ला पढ़ रही हैं
अर्थात भूख से आंतें कुलबुला रही हैं।
(कुल-हो-अल्लाह–कुरान के एक सूरा का प्रारंभिक अंश है; जिसे विशेष अवसरों पर पढ़ते हैं।)
अंतड़ी में रूप बकची में छब, (मु. स्त्रि.)
रूप आंतों में और छवि बक्से में बंद रहती है। अर्थात चेहरे की सुंदरता खाने-पीने और शरीर की सुंदरता वस्त्र-आभूषणों पर निर्भर करती है।
अंत बुरे का बुरा
बुरे का अंत बुरा ही होता है। जो किसी का बुरा करता है, अंत में स्वयं उसका बुरा होता है।
अंत भले का भला
जो दूसरों के साथ भलाई करता है, अंत में उसका स्वयं भला होता है।
अंत भला सो भला
सब बातों को सोचकर अंत में जिस निर्णय पर पहुँचा जाए, उसे ही ठीक मानना चाहिए।
(इसी प्रकार की दूसरी कहावत है–‘अंत भला सो गता’ अर्थात अंत समय जैसी मति होती है, वैसी ही मृत्यु के बाद जीव की दशा होती है।)
अंदर छूत नहीं, बाहर कहें दुरदुर, (हि.)
मन में तो संयम नहीं, पर बाहर से सफाई रखें। पाखंडी के लिए क.।
अंधरी गैया, धरम रखवाली, (ग्रा.)
अंधी गाय धर्म की रक्षा करने वाली होती है, अर्थात उसकी सेवा से विशेष पुण्य मिलता है। भाव यह है कि दीन-हीन की सेवा करनी चाहिए।
अंधा कहे मैं सरग चढ़ भूतों और मुझे कोई न देखे।
अनाचारी खुल्लमखुल्ला निंदित आचरण करके चाहता है कि उसके कर्मों का पता किसी को न चले, तो यह कैसे संभव है ?
अंधा क्या चाहे, दो आंखें
जिसे जिस वस्तु की आवश्यकता होती है, वह उसी की चिंता करता है। अथवा किसी की इच्छित वस्तु के लिए पूछे जाने पर क.।
अंधा क्या जाने बसंत की बहार
जिसने जो वस्तु देखी ही नहीं, वह उसकी विशेषता क्या जाने ?
अंधा क्या जाने लाल की बहार
दे. ऊ।
[लाल–(फा. लाल) एक फूल विशेष।]
अंधा गाए, बहरा बजाए
जहां दो एक से एक मूर्ख इकट्ठे हुए हों, वहां क.।
अंधा गुरु, बहरा चेला, मांगे हड़ दे बहेड़ा
मांगता है हड़ तो चेला देता है बहेड़ा। न गुरु चेले का कुछ देखता है और न चेला गुरु की कुछ सुनता है। जहां दोनों एक-दूसरे के विपरीत हों अथवा मिलकर काम न कर सकते हों, वहां क.।
अंधा चूहा, थोथे धान
जो जिस वस्तु के योग्य होता है, उसे वही वस्तु मिलती है, अथवा वह उसी से संतुष्ट हो जाता है।
अंधाधुंध मनोहरा गाय
चूंकि कोई देखने या सुनने वाला नहीं, इसलिए मनोहरा के मन में जो आता है सो गाए चला जा रहा है।
जहां कोई देखने वाला नहीं, वहां जो मन में आए सो किए जाओ।
मनोहरा=किसी व्यक्ति का नाम।
अंधा बगुला कीचड़ खाय
अभागा हमेशा दुख भोगता है। अथवा कह सकते हैं कि अनाड़ी को हमेशा निकम्मी वस्तु ही मिलती है।
अंधा बांटे शीरनी, फिर-फिर अपनों ही को दे
जब कोई आदमी किसी वस्तु को घुमा-फिराकर अपने ही लोगों को देता है, तब क.। कुनबापरस्ती।
शीरनी=शीरीनी, मिठाई।
पाठा.–अंधा बांटे रेवड़ी...।

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